अलीगढ़ के हरदुआगंज थाने में महिला को जमीन पर बैठाकर फरियाद सुन रहे ये दरोगा सुरेंद्र तोमर हैं, जो हरदुआगंज थाने के साधू-आश्रम हल्का के कार्यवाहक इंचार्ज है। शनिवार को गांव कलाई में दो भाइयों में विवाद होने पर पुलिस दोनों को थाने ले आई, पीछे आई पत्नी झगड़े की वजह बताकर करवाचौथ त्यौहार का हवाला देकर सुलह की गुहार लगा रही थी।
मगर भारतीय संविधान से अलग दरोगा का महिला सम्मान के प्रति खुद का कानून है, जिसे दरोगा ने सख्त लहजा अख्तियार करते हुए लागू कर जिससे मायूस महिला जमीन पर बैठकर रहम की दुहाई देने लगी, थाने में कैमरे होने से तो दरोगा को कोई फर्क नहीं पड़ता मगर मीडिया के कैमरे को चालू देख दरोगा जी चेते। यही नहीं हल्का फील्ड में तो दरोगा के व्यवहार व क्राइम कंट्रोल के खासे चर्चे हैं।
पिछले दिनों देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट के परिसर में स्थित न्याय की देवी की प्रतिमा की आंखों से पट्टी हटाकर उसे खुली आंखों के साथ दिखाया गया है, इसके साथ ही न्याय की देवी का एक हाथ में संविधान और दूसरे में न्याय का तराजू थामे दिखाई देना ऐतिहासिक फैसला है।
मगर न्याय के प्रथम व अहम स्थल थाने में बैठे सुरेंद्र तोमर जैसे दरोगा की आंखों से सामंतवादी सोच की पट्टी खुले बिना क्या न्याय संभव है, ऐसा लगता है वर्दी के गुरुर में जैसे इनकी आत्मा ही मर गई है। न्याय की देवी की तरह ही इनकी आंखों से संकीर्ण सोच की पट्टी हटना व इनके हाथ में संविधान की किताब आना भी जरूरी है। जिससे न्याय के उच्च या सर्वोच्च दर पर पहुंचने से पहले फरियादी का थाने में मान सम्मान का यूं हनन ना हो उनकी न्याय की उम्मीद को यूं ही ना कुचल दिया जाए। तभी पुलिस स्मृति दिवस पर हर भारतवासी को खाकी वर्दी कीर्ति पर गर्व होगा। जय हिंद, जय भारत