नोएडा के भंगेल में दो जनसेवा केंद्रों की आड़ में एक साल से फर्जी आधार और पैन कार्ड बना रहे गिरोह का सेक्टर-63 पुलिस ने पर्दाफाश किया है। पुलिस ने दोनों जनसेवा केंद्रों के संचालक मूलरूप से बिहार के वैशाली निवासी संजीत कुमार और अलीगढ़ निवासी जितेंद्र समेत आगरा निवासी आकाश को गिरफ्तार किया है।
गिरफ्तार आरोपियों के पास से छह लैपटॉप, 11 टैबलेट, वेब कैमरा, दो आई स्कैनर मशीन, दो बायोमीट्रिक मशीनें, छह फर्जी आधार कार्ड, सिलिकॉन का अंगूठा, आधार और पैन कार्ड बनाने के प्लास्टिक कार्ड, आठ फिंगर प्रिंट स्कैनर, थंब स्कैनर मशीन बरामद समेत अन्य सामान बरामद हुए हैं।
पुलिस के मुताबिक आरोपी खराब सिबिल स्कोर वाले लोगों को बैंक से कर्ज दिलाने के लिए फर्जी आधार और पैन कार्ड बनाते थे। सिबिल स्कोर खराब होने की वजह से उन्हें बैंकों से लोन नहीं मिल पाता था। ऐसे लोग मुंहमांगी रकम देकर आधार और पैन कार्ड बनाकर बैंकों से लोन कराते थे। आरोपी पहले फर्जी आधार कार्ड बनाते थे। बाद में उसी नाम, पते और तस्वीर का इस्तेमाल कर फर्जी पैन कार्ड बनाए जाते थे। जिसे दिखाकर नए नाम और पते पर बैंकों से लोन कराए जाते थे।
पुलिस पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि नाम, पते और जन्मतिथि में मामूली बदलाव कर एक शख्स के दो आधार कार्ड बनाए जाते थे। एसीपी रामकृष्ण तिवारी ने बताया कि गिरोह करीब एक साल से भंगेल में गिरोह सक्रिय था। दोनों जनसेवा केंद्रों के संचालक गिरोह के सरगना हैं। आरोपी सैकड़ों लोगों के फर्जी आधार और पैन कार्ड बनवा चुके हैं। गिरोह के कई बदमाशों को पहले भी गिरफ्तार किया जा चुका है। फिलहाल पुलिस फर्जी दस्तावेज के आधार पर लोन स्वीकृत कराने वाले लोगों की जांच में जुटी है।
हाथ की जगह पैर की उंगलियों को करते थे स्कैन
पुलिस के मुताबिक आरोपियों ने यूआईडीएआई की साइट पर फिरोजाबाद की एक बैंक का एक्सेस हासिल किया हुआ था। आरोपी हाथ की जगह पर पैर की उंगलियों के निशान स्कैन करते थे। साथ ही आंखों की रेटिना को स्कैन करने से पहले मशीन उलट देते थे। आरोपी सोशल मीडिया सहित अन्य माध्यमों से लोन लेने के इच्छुक लोगों से संपर्क करते थे। आरोपियों ने कई जगहों पर एजेंट भी बना रखे थे। जांच में पता चला है कि आरोपी कार्ड बनाने के लिए बैन की गई मशीन का इस्तेमाल करते थे।
हर फर्जी कार्ड के लिए 5 से 10 हजार रुपये की वसूली
भंगेल स्थित दोनों जनसेवा केंद्र में हर फर्जी कार्ड बनाने के लिए 5 से 10 हजार रुपये तक वसूले जाते थे। लोन और ग्राहक की क्षमता के अनुसार दस्तावेज का रेट तय किया जाता था। ज्यादा लोन लेने वालों से ज्यादा रकम वसूली जाती थी।