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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आरोप पत्र दाखिल होने या अदालत द्वारा आरोप पत्र का संज्ञान लेने से अग्रिम जमानत अर्जी खारिज करना जरूरी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि जब तक कि याची को गिरफ्तार नहीं कर लिया जाता तब तक अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
कोर्ट ने मामले में निचली अदालत द्वारा अग्रिम जमानत निरस्त किए जाने के आदेश को सही नहीं माना और कहा कि तय कानूनी स्थिति को किसी भी तरह से तोड़-मरोड़ कर पेश करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह आदेश न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव ने अलीगढ़ के डॉ. कार्तिकेय शर्मा व दो अन्य की अग्रिम जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है।
याची डॉ. कार्तिकेय शर्मा और उसके माता-पिता के खिलाफ उसकी पत्नी डॉ. पल्लवी शर्मा की ओर से अलीगढ़ के क्वारसी थाने में दहेज उत्पीड़न, मारपीट, धमकी और दहेज निषेध अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। निचली अदालत ने याची अग्रिम जमानत अर्जी को आरोप पत्र दाखिल होने की वजह से खारिज कर दिया था। याची ने उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ नहीं है कि जिससे ऐसा लगे कि याची ने जांच में सहयोग नहीं किया है।
प्रतिवादियों की ओर से कहा गया कि याचियों के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 82 के तहत फरार घोषित करने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। याचियों की ओर से कहा गया कि कार्रवाई होने से पहले ही उनकी ओर से अर्जी दाखिल कर दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि पहले से ही व्यवस्था है कि कोई भी आरोपी गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल कर अग्रिम जमानत की मांग कर सकता है और कोर्ट उसे अग्रिम जमानत दे सकती है।