मंगल पांडे की 165 वीं पुण्यतिथि : आखिर क्यों जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी पर चढ़ाने से मना कर दिया, जानें 1857 की क्रांति के 'महानायक' की कहानी

ब्यूरो ललित चौधरी


आज मंगल पाण्डेय की पुण्यतिथि है। बता दें कि, आज ही के दिन यानी 8 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था। आज मंगल पाण्डेय के बलिदान के 165 साल बाद भी युवा उनसे प्रेरणा लेते हैं। वे सन् 1857 की क्रान्ति का बिगुल बजाने वाले वीर सिपाही थे। 

बलिया में हुआ था जन्म

क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था।

08 अप्रैल 1857

बंगाल की बैरकपुर छावनी का माहौल उस दिन बहुत उदास और बोझिल सा था. सुबह जब रेजिमेंट के सिपाही रातभर की नींद के बाद तड़के उठने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन्हें पता चला कि तड़के मंगल पांडे को फांसी दे दी गई है. इसके बाद पूरी छावनी में तनाव पसर गया. किसी को अंदाज नहीं था कि मंगल पांडे को समय से 10 दिन पहले ही फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा. उनकी फांसी की सजा तो 18 अप्रैल को मुकर्रर की गई थी।

ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ अगर आजादी की लड़ाई की पहली चिंगारी असल में मंगल पांडे भड़काई थी. वो हमारे ऐसे नायक थे, जिन्होंने पूरे देश को झकझोर कर जगा दिया था. ईस्‍ट इंडिया कंपनी के खिलाफ क्रांति की शुरुआत करने वाले मंगल पांडे ने बैरकपुर में 29 मार्च 1857 को अंग्रेज अफसरों पर हमला कर घायल कर दिया था. कोर्ट मार्शल के बाद उन्‍हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी देनी तय की गई थी लेकिन हालत बिगड़ने की आशंका के चलते अंग्रेजों ने गुपचुप तरीके से 10 दिन पहले उन्हें फंदे पर लटका दिया।

भारत सरकार ने 5 अक्टूबर, 1984 में की स्टैंप जारी

उस दिन की याद में भारत सरकार ने बैरकपुर में शहीद मंगल पांडे महाउद्यान बनवाया. साथ ही उनके नाम और फोटो वाली स्टैंप को दिल्ली के कलाकार सीआर पाकराशी से तैयार करवाकर 5 अक्टूबर, 1984 को जारी किया।

बैरकपुर छावनी के सिपाही नंबर 1446

वह कलकत्‍ता (अब कोलकाता) के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इंफैंट्री की पैदल सेना के सिपाही नंबर 1446 थे. उनकी भड़काई क्रांति की आग से ईस्‍ट इंडिया कंपनी हिल गई थी।

उन्‍हें बैरकपुर में 29 मार्च की शाम अंग्रेज अफसरों पर गोली चलाने और तलवार से हमला करने के साथ ही साथी सैनिकों को भड़काने के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई. उस समय बैरकपुर छावनी में फांसी की सजा देने के लिए जल्लाद रखे जाते थे लेकिन उन जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से साफ मना कर दिया. तब अंग्रेजों ने बाहर से जल्लाद बुलाए।

कलकत्‍ता से बुलाने पड़े थे जल्‍लाद

बैरकपुर में कोई जल्‍लाद नहीं मिलने पर ब्रिटिश अधिकारियों ने कलकत्‍ता से 04 जल्‍लाद बुलाए. यह समाचार मिलते ही कई छावनियों में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ असंतोष भड़क उठा. इसी वजह से आनन फानन में करीब चुपचाप मंगल पांडे को 8 अप्रैल 1857 की तड़के जल्दी ही फांसी पर लटका दिया गया।

मंगल पांडे ने आखिरी गोली खुद पर ही चलाई थी, हुए थे जख्‍मी

वैगनर लिखते हैं कि मंगल पांडे ने दो अंग्रेज अफसरों पर गोली चलाई, लेकिन दोनों बार उनका निशाना चूके गया. इसके बाद उन्‍होंने अपनी तलवार से हमला कर अंग्रेज अफसर को घायल कर दिया. इसके बाद उनके एक साथी ने उन्‍हें पकड़ लिया. इसके बाद उनसे छूटकर भागे मंगल पांडे ने अपनी बंदूक को जमीन पर रखकर पैर के अंगूठे से अपने ही ऊपर गोली चला दी. इसमें वह जख्‍मी हो गए और उनके कपड़े जल गए.

‘मारो फिरंगी को’ नारा दिया था

पहले तो अस्पताल में रखकर उनका इलाज किया गया. करीब एक हफ्ते में जब वह ठीक हो गए तो उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू हुई. उन्‍हें गिरफ्तार कर कोर्ट मार्शल किया गया और फांसी की सजा दी गई. मंगल पांडे ने ही ‘मारो फिरंगी को’ नारा दिया था. मंगल पांडे को आजादी का सबसे पहला क्रांतिकारी माना जाता है. जोंस लिखती हैं कि घटना के चश्मदीद गवाह हवलदार शेख पल्टू के मुताबिक सार्जेंट मेजर जेम्स ह्वीसन हंगामे की आवाज सुनकर पैदल ही बाहर निकले. इस पर मंगल पांडे ने ह्वीसन पर गोली चलाई, लेकिन ये गोली ह्वीसन को नहीं लगी।

बेरहामपुर में चर्बी लगी गोली चलाने से किया था मना

इस पूरे घटनाक्रम से पहले 26 फरवरी, 1857 को सुअर और गाय की चर्बी वाले कारतूस पहली बार इस्‍तेमाल करने का समय आया तो बेरहामपुर की 19वीं नेटिव इंफैंट्री में तैनात मंगल पांडे के समझाने पर कई सैनिकों ने ऐसा करने से इनकार दिया. दरअसल, उस समय कारतूसों को इस्‍तेमाल से पहले मुंह से खींचना पडता था. इसके बाद सभी सैनिकों को बैरकपुर लाकर बेइज्‍जत किया गया था।


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