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अलीगढ़ : ये जो सड़क आप देख रहे हैं। ये रामघाट रोड पर पीएसी के पास की है, जो तीन माह पहले दलदल बनी हुई थी। इसकी मरम्मत पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की पार्थिव देह के यहां से गुजरने के दो दिन पहले हुई थी। त्रयोदशी से पहले इस सड़क को काली कर चमका दिया। ये जरूरी भी था क्योंकि राजस्थान के राज्यपाल से लेकर कई वीवीआइपी यहां से अतरौली के लिए निकले थे। लाखों रुपये खर्च कर बनी इस सड़क पर अब बारिश का पानी भरा हुआ है। सड़क बनाने से पहले पानी निकासी का स्थायी समाधान निकाल लिया होता तो इससे बचा जा सकता था। बारिश का इतना पानी भर गया है कि सड़क दिखाई नहीं दे रही। पानी निकासी के लिए लगाया गया पंप भी नाकाफी साबित हो रहा है। ऐसे ही लगातार पानी भरा रहा तो सड़क के फिर से गड्ढों में तब्दील होने में देर नहीं लगेगी।
क्वार्सी से पीएसी तक
सरकार ने रामघाट रोड का नाम पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के नाम पर करने की घोषणा की है। ऐसे में इस मार्ग का महत्व और भी बढ़ जाती है। अफसरों की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि इस मार्ग को और बेहतर बनाया जाए। समस्या केवल पीएसी के पास तक ही नहीं है बल्कि दुबे के पड़ाव से तालानगरी तक इस पर काम करने की जरूरत है। दुबे के पड़ाव से क्वार्सी चौराहे तक तो इस मार्ग केा अतिक्रमण ने जकड़ ही लिया था अब क्वार्सी से पीएससी तक यही हालत है। जबकि यह मार्ग सबसे चौड़े मार्गों में से एक है। क्वार्सी चौराहे को आदर्श चौराहा बनाने का सपना दिखाया गया था लेकिन कुछ नहीं हुआ, उल्टा सड़क के दोनों और फुटपाथ पर दुकानें सज गईं। अफसरों ने इसे पहले से ही गंभीरता से लिया होता तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती। लेकिन अब गंभीर होने की जरूरत। है
सख्त तो होना पड़ेगा
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी देश ही नहीं, विदेशों में भी पहचान रखती है। यहां होने वाली हर घटना का अपना महत्व होता है। अच्छाई की गूंज भले ही दूर तक न पहुंच पाए, लेकिन बुराई को फैलने में देर नहीं लगती है। पिछले एक माह से एएमयू में कुछ न कुछ ऐसा घटित हो रहा है, जो यूनिवर्सिटी की साख के लिए ठीक नहीं है। पहले पीलीभीत के युवक ने कैंपस में आकर आत्महत्या कर ली। उसके कुछ दिन बाद डक प्वाइंट के पास बाहरी लोगों ने एक युवक को घेरकर गोली मार दी। पिछले दिनों गुलिस्ताने सैयद के पास बाहरी गुटों में फायङ्क्षरग हो गई। ऐसा तब हो रहा है, जब कैंपस में छात्र नहीं है। पिछले दिनों कैंपस में पर्चा चस्पा कर दिए। इन घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए इंतजामिया को सख्त होना होगा। बाहरी लोगों पर कार्रवाई के साथ छात्रों के लिए बेहतर माहौल बनाने की जरूरत है।
आ गई पैरों में गिरने की बारी
नेतागीरी चीज ही ऐसी है। नेताओं को पल-पल पर रंग बदलने के लिए मजबूर करती है। बात चुनावी सीजन की हो तो रंगों में और भी निखार आ जाता है। विधानसभा चुनाव की रणभेरी भले ही अभी न बजी हो, लेकिन नेताजी अपनी मंजिल की ओर निकल पड़े हैं। पिछले चार साल में इन रास्तों पर शायद ही वो गए हों। अब यही रास्ते उन्हें सुगम नजर आ रहे हैं। छर्रा के नेताजी के तो फोटो वायरल होने लगे हैं। वो जहां भी लोगों के बीच जाते हैं, उनके पैरों में गिर जाते हैं और पैर छुए बगैर तो वो आशीर्वाद ही नहीं लेेते। उनकी इस शैली की लोग तारीफ भी कर रहे हैं। सवाल भी दाग रहे हैं कि चुनाव के समय ही ये शिष्टाचार क्यों याद आता है? जनता के दिल तो बिना पैर छुए भी जगह बनाई जा सकती है। जरूरत है तो उनके सुख-दुख बांटने की।