जाहरवीर बाबा के 200 वर्ष पूर्व मंदिर में श्रद्धालु की भीड़ उमड़ी, श्रद्धालु ने भाव सहित की पूजा

 

ब्यूरो ललित चौधरी

सहपऊ। कोकने कला में बाबा जाहरवीर ( गोगा जी ) का 200 मंदिर वर्ष पहले का है। जो कि सन् 1800 का बना हुआ।

मंदिर में हार साल मेला लगता है जिसमे भक्त पहले बाबा जाहरवीर गोगो जी की समांधी पर चंदन चुरा को हाथ से रगड़ते है और बाबा का सेवादार चाबुक मार कर आर्शीवाद देता हैं।

मंदिर की काफी मान्यता से कई हजार श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, जोकि एक बड़ा मेला का आयोजन भी होता है। जहां पर बच्चो के कई प्रकार के झूले,खाने पीने की चींजे, खिलौने आदि दुकानों अम्बार लगा रहता है। मंदिर की देख रेख पालीवाल कमेटी के हाथ में है, जो कि जाहरवीर बाबा की जागरण व मंदिर की देख रख पर खर्च करते है।

जाहरवीर बाबा की जन्म की बात :-

राजस्थान के महापुरुष गोगाजी का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। इसे गोगा नवमी के नाम से जाना जाता है।

मान्यता है कि गोगाजी की मां बाछल देवी को संतान नहीं हुई थी वो निःसंतान थीं। संतान प्राप्त के लिए बाछल देवी ने हर तरह के यत्न कर लिए थे। लेकिन उन्हें किसी भी तरह से संतान सुख नहीं मिला। गुरु गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या में लीन थे। तभी बाछल देवी उनकी शरण में पहुंच गईं। उन्होंने उन्हें अपनी सभी परेशानी बताईं। तभी गुरु गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। गोरखनाथ ने बाछल देवी को प्रसाद के तौर पर एक गुगल नामक दिया। यह प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई। इसके बाद गोगा देव (जाहरवीर) का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से ही इनका नाम गोगाजी पड़ गया।

गोगा देव जी से संबंधित बातें :-

गोगा देव गुरु गोरखनाथ के परम शिष्य थे। इनका जन्म चुरू जिले के ददरेवा गांव में हुआ था। यहां पर लगभग सभी धर्मों और संप्रदायों के लोग हाजरी देने आते हैं। मुस्लिम समाज के लोग इन्हें जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं। कहा जाता है कि यह स्थान हिंदू और मुस्लिम की एकता का प्रतीक है। लोकमान्यता व लोककथाओं की मानें तो गोगा जी को सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। इन्हें गुग्गा वीर, राजा मण्डलीक व जाहर पीर के नाम से भी जाना जाता है। इनकी जन्मभूमि पर उनके घोड़े का अस्तबल आज भी है। इतने वर्षों बाद भी उनके घोड़े की रकाब वहीं पर मौजूद है। साथ ही यहा उनके गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी उपस्थित है।

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