डेस्क समाचार दर्पण लाइव
अलीगढ़ :- लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नोएडा में रहने वाले नेताजी हाथी पर सवार हुए तो पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं ने सवाल उठाए, मगर बहनजी ने किसी की नहीं सुनी। फिर नेताजी को नीला झंडा देकर महासमर में भी उतार दिया। तर्क दिया कि वे चौधरी चरण सिंह की विरासत वाले वोट बैंक को साधेंगे तो जीत की राह आसान हो जाएगी। पार्टी नेताओं में फिर कानाफूसी हुई कि चौधरी चरण सिंह की विरासत वाले वोटरों का रूझान तो पिछले चुनाव से ही कमल वाली पार्टी की तरफ है, नेताजी कुछ नहीं कर पाएंगे। हाईकमान तक चर्चा पहुंची, मगर बहनजी अपने फैसले पर अडिग रहीं। हद तो तब हुई जब नेताजी की भाजपा से नजदीकियों की खबरें आईं। फोटो भी वायरल हुए, मगर देर हो चुकी थी। नेताजी चुनाव हार गए। अब चुनाव से पहले नेताजी भाजपा में शामिल हो गए। पार्टी नेताओं का कहना है, घर लौट गए नेताजी।
फोन सुनने को रखे चार कर्मचारी
ऐतिहासिक धरोहरों के शहर से आए साहब ने विभाग की ‘सेहत’ दुरुस्त करने के नाम पर अधीनस्थों पर दबाव बढ़ा दिया है। कार्यालय के बगल में ही कोठी है। ऐसे में साहब का काम सुबह सात बजे से शुरू हो जाता, खत्म कब होगा, किसी को पता नहीं होता। जितने समय तक कार्यालय में बैठते हैं, अधीनस्थों का जमघट लगाए रहते हैं। साहब के शाही ठाठ-बाट भी देखने लायक हैं। चार कर्मचारी तो साहब ने केवल मोबाइल पकड़ने के लिए रखे हैं। अब विधायक का फोन आए या किसी और का, पहले कर्मचारी ही रिसीव करेंगे। वहीं, साहब का व्यवहार अधीनस्थों का रास नहीं आ रहा। दफ्तर में तनाव बढ़ रहा है। पिछले दिनों साहब ने एक संविदा कर्मचारी से ऐसा व्यवहार किया कि वह इस्तीफा देकर चला गया। कई और कर्मचारी, ऐसा ही मूड बनाए हुए हैं। कई डीएम व कमिश्नर साहब से गुहार लगाने की सोच रहे हैं।
कुछ तो दायित्व बोध रखिए साहब
योगी सरकार की तरफ से सरकारी विभागों में अफसरों व कर्मचारियों के अटैचमेंट खत्म करने को लगातार दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं। फिर भी, कई विभागों में अटैचमेंट का खेल बंद नहीं हुआ है। सत्ताधारी नेताओं व अधिकारियों की सिफारिश पर आज भी सैकड़ों कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्रों की बजाय जिला मुख्यालय पर अटैच हैं। एक विभाग की ‘सेहत’ बिगड़ने की वजह यही है। पिछले दिनों मीडिया में पर्दाफाश होने पर ‘विकास’ वाले साहब ने ऐसे कर्मियों की सूची तलब कल ली। विभागीय मुखिया ने ठंडे बस्ते में पड़ी पुरानी सूची निकालकर साहब को पहुंचाकर इतिश्री कर ली। यदि, उनमें दायित्वबोद्ध होता तो कर्मचारियों के अटैचमेंट तत्काल खत्म करने के बाद अपनी रिपोर्ट आगे भेजते। हो सकता है, कुछ कर्मचारियों के अटैचमेंट में मानवीय आधार रहा हो, लेकिन सभी के साथ तो ऐसा नहीं हो सकता। सूची भेजकर विभाग फिर चुप है। ‘विकास’ वाले साहब के आदेश का इंतजार है
निष्ठा के सवाल पर पंजा लड़ाने लगे नेता
पंजे वाली पार्टी में रहकर कौमी एकता की बात करने वाले एक नेता की निष्ठा पर पिछले दिनों जिलाध्यक्ष ने सवाल उठा दिए। तुरंत तिलमिला उठे। हुआ यूं कि मिशन 2022 की तैयारी के बीच ही नेताजी ने पार्टी की विचारधारा व स्टैंड से अलग ऐसा बयान दिया, जिससे पूरी पार्टी असहज हो गई। दरअसल, उन्होंने दिवंगत ‘बाबूजी’ के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करते हुए सरकार से जनपद का नाम हरिगढ़ की बजाय बाबूजी के नाम पर ही कर देने की मांग उठा दी। जिलाध्यक्ष ने कहा, ऐसी मांग करने वाला सच्चा कांग्रेसी नहीं हो सकता। नेताजी को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि जिलाध्यक्ष को कांग्रेसियों की परिभाषा समझाने के लिए कटघरे में खड़ा कर दिया। नेतृत्व पर सवाल उठाए। पूर्व के बयानों का हवाला दिया। बाबूजी को श्रद्धांजलि अर्पित करने पर भी व्यंग्य किया। यह अलग बात है कि नेताजी के बयान का किसी कांग्रेसी ने समर्थन नहीं किया।