ब्यूरो ललित चौधरी
फांसी का फंदा चूमने वाले तीन वीरों में भगत सिंह और सुखदेव जहां पंजाब से थे वहीं राजगुरु महाराष्ट्र के एक ब्राह्मण परिवार से थे लेकिन इनके जीवन का एक बड़ा समय उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बीता था।
राजगुरु का जन्म महाराष्ट्र के पुणे जिले के खेड़ा गाँव में 24 अगस्त 1908 को हुआ था, राजगुरु महाराष्ट्र के एक ब्राह्मण परिवार से थे लेकिन इनके जीवन का एक बड़ा समय उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बीता था। इनके पिता का नाम हरिनारायण था। उन्होंने दो शादियां की थीं। उनके पहली पत्नी से छह संतानें थी और दूसरी पत्नी से पांच। राजगुरु पांचवें नंबर की संतान थे। मात्र छह वर्ष की अवस्था में पिता का निधन हो जाने के बाद इनका पालन पोषण बड़े भाई और मां ने किया।
राजगुरु के अध्ययन और क्रांतिकारी के बारे में :-
गांव में आरंभिक शिक्षा के बाद विद्या अध्ययन के लिए राजगुरु बनारस आ गए। जहां इन्होंने संस्कृत आदि विषयों की पढ़ाई की। हिन्दू धर्म ग्रंथों का विषद अध्ययन किया। बनारस में इनकी गिनती ज्ञानी लोगों में होने लगी। अध्ययन के दौरान ही यह क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए। मात्र 16 साल की उम्र में राजगुरु ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन जो ज्वाइन कर लिया। इसके बाद राजगुरु चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव आदि क्रांतिकारियों के संपर्क में आगए। खास बात ये हैं कि क्रांतिकारियों के बीच ये रघुनाथ नाम से चर्चित थे।
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु तीनों को एक साथ दी फांसी :-
1928 में लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए भगत सिंह , सुखदेव के साथ मिलकर अंग्रेज पुलिस अधिकारी जे पी सांडर्स की हत्या कर दी , अंग्रेजो ने तीनों महान क्रान्तिकारियो को फांसी की सजा सुनायी थी। उस समय राजगुरु ने कहा था ‘‘अपनी जिंदगी देकर देश के करोड़ों नर-नारियों को इस स्वर्ग के द्वार को खोल कर अपनी खूबसुरती की एक झलक अगर हम दिखा सके , तो बाकी काम तो वे स्वयं पूरा कर लेंगे।''
राजगुरु ने कहा था कि ऐसी हसींन मौत पर पछताने वाला मूर्ख ही कहा जाएगा। क्रान्तिकारियों के लिए तो सहादत ही मुंह मांगा वरदान है। तीनों महान क्रान्तिकारियो क्रमश: शहीद-ए-आज़म भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी।