रिपो० ललित चौधरी
शिकारपुर। नगर निवासी एक शिक्षक और उनकी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पत्नी की एक ही दिन में ही मौत हो गई। एक ही दिन में माता-पिता की मौत होने पर उनके चार बच्चों के सिर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। अभी तक वह इस सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं। माता-पिता को याद कर अक्सर इन बच्चों की आंखें भर उठती हैं। चारों बच्चे अब दादा-दादी के सहारे हैं। बच्चों का दावा है कि हमारे माता-पिता की कोरोना से ही मौत हुई है। हालांकि सरकारी रिपोर्ट में दंपती की कोरोना से मौत होने की पुष्टि नहीं हुई है।
शिकारपुर निवासी सुशील कुमार नगर के ही डीएपी इंटर कॉलेज में शिक्षक थे। मूल रूप से गांव बोहिच निवासी सुशील 29 अप्रैल को पंचायत चुनाव डयूटी से लौटे तो बीमार हो गए। अगले ही दिन उनकी पत्नी की तबीयत खराब हो गई। अस्पताल में इलाज के दौरान पहले सुशील कुमार की मौत हो गई और कुछ घंटे बाद ही उनकी पत्नी विमलेश भी नहीं रहीं। माता-पिता का सिर से साया उठने के बाद तीन बेटी व एक बेटे का रो रोकर बुरा हाल है। उनका कहना है कि समय रहते ऑक्सीजन बेड मिल जाता तो उनके पापा बच जाते। सुशील की 24 वर्षीय बड़ी बेटी सुष्मिता बीटेक पास है। उससे छोटी बेटी सुष्मांजलि भौतिक विज्ञान ऑनर्स की फाइनल ईयर की छात्रा है। 17 वर्षीय तीसरी बेटी सुरभि बीएससी प्रथम वर्ष की छात्रा है। 15 वर्षीय बेटा गुरवेंद्र कक्षा दसवीं का छात्र है। माता-पिता का सिर से साया उठ जाने के बाद दादी राजवती और बाबा कृपाल सिंह का ही सहारा बचा है। दादा-दादी ने बताया कि जिस दिन से बेटे और बहू का निधन हुआ है, तभी से बच्चे सदमे में है और उनका रो-रोकर बुरा हाल है।
बेटियां बोलीं माता-पिता के सपने को साकार करेंगे :-
दिवंगत विमलेश और सुशील अपनी तीनोें बेटियों को इंजीनियर, वैज्ञानिक और न्यायाधीश बनाना चाहते थे। सुष्मांजलि का कहना है कि पापा मुझे इंजीनियर, सुष्मिता को वैज्ञानिक और सुरभि को न्यायिक सेवा में भेजना चाहते थे। जबकि भाई गुरवेंद्र के बारे में कहते थे कि यह अभी छोटा है और इसे क्या बनाना है यह बाद में निश्चित करेंगे। हम उनके सपने को साकार करने में जुटे थे। हमारे परीक्षा में टॉप करने पर हमेशा उत्साहवर्धन करते थे। उसने बताया कि हम बेटियां मम्मी पापा के सामने नहीं तो दादी राजवती और बाबा कृपाल सिंह के सामने उनके सपने का जरूर साकार करेंगे।