करन चौधरी पत्रकार
भारत के कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामले बेहद खतरनाक और चिंताजनक हैं, वहीं इसके समुचित इलाज और रोकथाम की ओर बेहतर कदम उठाने की जिम्मेदारी सरकार की है, राज्य चाहें कोई हो उसकी राजधानी में बैठे मुखिया के ही हाथ मे निर्देशों की कमान होती है, सोचिए जब राजधानी के ही हालात बदतर हों तो जनमानस को स्वयं के स्वास्थ्य की चिंता करना बेहद जरूरी हो जाता है, जी...हां बात देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की कर रहे हैं हालात की पोल भी हम नहीं प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक की पाती ही खोल रही है
कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक ने अपर मुख्य सचिव तथा प्रमुख सचिव स्वास्थ को पत्र लिखकर राजधानी में कोरोना वायरस संक्रमण के दौरान भी सुविधा पाने से वंचित लोगों के प्रति चिंता जताई है।
वायल पत्र |
योगी आदित्यनाथ सरकार में न्याय, विधायी एवं ग्रामीण अभियन्त्रण सेवा मंत्री ब्रजेश पाठक लखनऊ की लखनऊ मध्य विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। उनका स्वास्थ्य महकमे के जिम्मेदारों को लिखा गया अति गोपनीय पत्र वॉयरल हो गया है। लखनऊ की चिंताजनक हालत पर लिखे गए पत्र में उन्होंने लखनऊ में कोविड की बदइंतजामी और बदहाली को लेकर अपना दर्द बयां किया है। मंत्री ने सवाल उठाने के साथ लखनऊ में चिंताजनक हालत के बीच स्वास्थ्य महकमे में इंतजामी की बदसूरत तस्वीर पेश की है। ये पाती इतिहासकार पद्मश्री योगेश प्रवीन का स्वास्थ्य बिगड़ने पर लगातार मांग के बाद भी दो घंटे तक एंबुलेंस ना मिलने से उनका असमय निधन होने से व्यथित कैबिनेट मंत्री ने लिखी। अब सोचिए एक विख्यात साहित्य सृजक व देश के अनमोल रत्न को अंतिम समय में प्रदेश की राजधानी में स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिली तो प्रदेश में आम आदमी के बारे में हम क्या कहें। उन्होंने पत्र में लिखा कि मैंने लखनऊ के सीएमओ से अनुरोध किया फिर भी एंबुलेंस नहीं मिली। समय से इलाज ना मिलने पर उनकी मौत हो गई। हम सब उनकी मौत के गुनाहगार हैं। मंत्री बृजेश पाठक ने 12 अप्रैल को अपर मुख्य सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य व प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा को अति गोपनीय पत्र लिखा है, जिसमें लखनऊ में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली बयां की गई है। अब यह पत्र सोशल मीडिया में वायरल हो जाने से विपक्ष भी सरकार पर सवाल खड़े कर रहा है।
वायरल पत्र में कानून मंत्री ने लिखा है कि विगत एक सप्ताह से लखनऊ में चिकित्सा सेवाओं का अत्यंत चिंताजनक हाल है। हमारे पास लखनऊ जनपद से सैकड़ों फोन आ रहे हैं, जिनको हम समुचित इलाज नहीं दे पा रहे। मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय में फोन करने पर बहुधा फोन के उत्तर नहीं दिए जाते,
जिसकी शिकायत चिकित्सा शिक्षा मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री व अन्य से करने के उपरांत अब फोन तो उठता है किंतु सकारात्मक कार्य नहीं होता। मरीजों को कोरोना की जांच रिपोर्ट मिलने में हफ्ते तक का समय लग रहा है। एंबुलेंस भी समय पर नहीं मिल पा रही। सीएमओ कार्यालय से मरीज को भर्ती स्लिप मिलने में दो दो दिन का समय लग रहा है। असंतोषजनक स्थिति को देखते हुए मैं स्वयं आठ अप्रैल को सीएमओ कार्यालय जा रहा था। मगर अपर सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के फोन पर भी आश्वासन के बाद नहीं गया। बावजूद इसके अब भी स्थिति किसी तरह से संतोषजनक नहीं हुई।
फिर भी पद्मश्री को नहीं मिली एंबुलेंस
गोपनीय पत्र में लिखा है कि पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त योगेश प्रवीण की एक दिन पहले तबीयत खराब हो गई। मैंने स्वयं सीएमओ से बात कर तत्काल एंबुलेंस मुहैया कराने को कहा, लेकिन खेद का विषय है कि घंटों तक उन्हें एंबुलेंस नहीं मिली। लिहाजा उनका निधन हो गया। मंत्री ने चिट्ठी में इतिहासविद योगेश प्रवीन को भी एंबुलेंस न मिलने का जिक्र करते हुए लिखा है कि समय से चिकित्सा सुविधा न मिल पाने के कारण उनका निधन हो गया। मंत्री ने चिट्ठी में लिखा है कि पिछले एक सप्ताह से जिलों से सैकड़ों फोन आ रहे हैं, जिनको हम ठीक से इलाज नहीं दे पा रहे।
मरीजों के लिए नहीं हैं बेड
लखनऊ में रोजाना चार से पांच हज़ार कोरोना मरीज मिल रहे हैं, लेकिन उनके लिए अस्पतालों में बेड के पर्याप्त इंतजाम नहीं है। निजी पैथोलॉजी में जांच बंद करा दी गई है। उपरोक्त स्थितियों को देखते हुए मरीजों को अस्पतालों में बेड उपलब्ध कराने, कोरोना जांच व्यवस्था को सुचारू करने व एम्बुलेंस को समय पर मुहैया कराने के संदर्भ में कार्रवाई की जाए। कोविड-19 रोगियों के लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराए जाएं। गंभीर नॉन कोविड मरीजों के भी इलाज की समुचित व्यवस्था हो।
लखनऊ के सीएमओ का फोन ही नही उठता है। लखनऊ के निजी लैब में कोविड जांच नहीं हो रही है। इतना ही नहीं कोविड अस्पतालों में बेड की संख्या कम है। उन्होंने मांग की है कि गंभीर रोगियों को तुरंत भर्ती कर गंभीर रोगों से ग्रसित नॉन कोविड मरीजों का उचित इलाज हो।
मंत्री ने कहा कि इन परिस्थितियों को शीघ्र नियंत्रित नहीं किया तो लॉकडाउन लगाना पड़ सकता है।
गिनाईं दिक्कतें
- 4 से 7 दिन लग रहे कोरोना की जांच रिपोर्ट में।
- 5 से 6 घंटे में पहुंच रही एंबुलेंस।
- सीएमओ ऑफिस से भर्ती स्लिप मिलने में दो-दो दिन लग रहे।
- कोविड अस्पतालों में बेड की संख्या कम।
- निजी पैथॉलजी में कोविड जांच बंद करवा दी गईं।
- 17 हजार जांच किट चाहिए, 10 हजार ही मिल पा रहीं।
- गंभीर रोगों से ग्रसित नॉन कोविड पेंशट को इलाज नहीं मिल रहा।
हमारी अपील
कोरोना संक्रमण के फैलाव की रोजाना खबरें आ रही हैं, आंकड़े बेहद भयावह हैं लेकिन हम लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से बहाने ईजाद करने में बहुत माहिर हैं....हमने लोगों को कहते सुना है कि कोरोना जैसी कोई चीज है ही नहीं, कुछ तो कहते है कि ये राजनेताओं की उपज है, और एहतियात से बचने के लिए तरह तरह की बात बनाकर बेपरवाही के बहाने खोज रहे है खुद के साथ दूसरों को भी ये ही ज्ञान बांट रहे हैं लोग बिना मास्क, शारीरिक दूरी का पालन किए भीड़ का हिस्सा बन रहे हैं, और कोविड नियंत्रण के लिए सरकार के निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं।
लेकिन इससे पहले एक बार गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि आप देश के हीरो हो या नहीं मगर अपने परिवार के हीरो जरूर हो....सोचो कि उनके हीरो को कुछ हुआ तो परिवार का क्या हाल होगा... और हां आप स्वास्थ्य व्यवस्था का भान बिल्कुल मत रखना क्योंकि जब लखनऊ के ये हाल है तो बाकी जिलों की स्थिति के बारे में कहने की जरूरत नहीं है। इसलिए अपने को सुरक्षित रखना खुद की जिम्मेदारी है, सतर्क रहिए सुरक्षित रहिए